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भग्वद्गीता

 आर्य जिस परिमार्जित ज्ञान प्राप्ति के लिए भारत आए वह निर्वेदं ( गीता 2/52 ) और खासतौर से मनुष्यों के लिए ( गीता 2/62 ) बिषयासक्त समुदाय को आसक्ति से दूर करने का है जो प्रज्ञाअपराध का मूल कारण है ॥ भीष्म द्रोण कर्ण सभी स्थितप्रज्ञ होने के बाद भी मौत के मुंह में समा गए क्योंकि महज ज्ञान ही ईश्वर प्राप्ति का साधन नहीं है ॥ श्रद्धा को उसका आधार नहीं माना जा सकता क्योंकि वह गुणों ( गीता 2/17 ) के अधीन है और त्रैगुण्यविषया वेदा के कारण मात्र समर्पण ही एक साधन ( गीता 17/7 ) रह जाता है जो ज्ञानियों का ज्ञान और अज्ञानियों का अन्तिम भाव है जोकि भागवत में स्नान करती युवतियों द्वारा व्यासजी को प्राप्त हुआ ॥