शिवलिंग और नंदी
सृजन , पालन , संहार सबको संवारिती शक्ति का नाम है पृश्नि ॥ भगवान रुद्र जो साक्षात मृत्यु का भयानक स्वरूप हैं ,वही हैं जिनकी पूजा अर्चना को सभी आतुर रहते हैं ॥ उनका चाहिए कल्याणकारी शिवरूप जिसे हम चिन्ह या लिंगस्वरूप पूज सकते हैं ,प्रार्थना कर सकते हैं (यजुर्वेद 67/3 ) हजारों सालों से यही चल रहा है ,तो उनको साधारण नहीं , धर्मस्वरूप पूजा का अधिकार मानकर ऋषभ यानि नंदीबृषभ( चत्वारि श्रंगः ) जो हमेशा भगवान को आते हुए दक्षिण दिशा में मुख करके देखते हैं , हम साक्षी मानते हैं , कान में प्रार्थना सुनाते हैं , जलाभिषेक शिवलिंग का करते हैं ॥ इनका कल्याणकारी एक रूप बृषाकपि भी है जो बृषश्रंग ऋषि के पुत्र और इंद्र के भाई हैं आर्यों ने भारतीयों के साथ सिंधु नदी के आसपास अपना डेरा बनाया तथा समस्त ग्रुप कहलाया सिंधु या हिन्दू तथा धर्म हुआ सनातन ॥ चूंकि भगवान विष्णु पृथ्वी पर अवतार लेते हैं अतः इंद्र के छोटे भाई वामन भी कहलाए जिन्होंने तीन चरण में भूःभुवःस्वः तीनों लोक का भ्रमण किया ॥